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रविवार, मार्च 25, 2018

सतरंगी चमक बिखेरता कविता-संग्रह

कविता-संग्रह - सतरंगी आईना 
कवयित्री - मनजीतकौर ' मीत '
प्रकाशक - तस्वीर प्रकाशन, कालांवाली 
पृष्ठ - 112 
कीमत - 150/- ( सजिल्द )
44 छन्दमुक्त कविताओं, 28 ग़ज़लनुमा कविताओं और 5 गीतों से सजी कृति है " सतरंगी आईना " | छन्दमुक्त कविताओं में भी ग़ज़ल और गीत शैली की कविताओं का समावेश है | कवयित्री ने इस संग्रह में यहाँ शिल्पगत विविधता को स्थान दिया है, वहीं भावगत विविधता को भी स्थान दिया है, जिससे यह संग्रह सही अर्थों में सतरंगी बन पड़ा है |

                       छन्दमुक्त कविताओं में कवयित्री मदर टेरेसा को श्रद्धांजली देती है, भगतसिंह को याद करती है और 26/11 के प्रसंग को लेकर कविता की रचना करती है | बेटी कवयित्री का प्रिय विषय है | वह बेटी के घर में आने और बड़े होकर पराए घर जाने तक का वर्णन करती है | बेटी के पिता की लाचारी को देखती है | बेटी न चाहने वालों की दकियानूसी सोच पर प्रहार करती है, हालांकि उसने उन कारणों का भी वर्णन किया है, जिनके कारण लोग बेटी नहीं चाहते | बेटी के बारे में माँ की चिंता पर वह लिखती है - 
उम्र नहीं है तेरी बिटिया / उंच नीच समझाऊँ /
आना-जाना, गली-मौहल्ला / क्या सब ही तेरा छुडाऊँ /
कैसे तुझे बचाऊँ ( पृ. - 16 )
सीता के प्रसंग को उठाकर वह नारी की पीड़ा का ब्यान करती है, साथ ही बराबरी का हक मांगने की भी बात है | औरत का अपना घर कौन-सा है, इस सवाल को उठाया गया है | नारी के लुटने की पीड़ा उसे सताती है | उसके अनुसार मौत मानव की नहीं मानवता की हुई है | हर माल बिकाऊ है | समस्याएं वहीं की वहीं रहती हैं | आदमी की इच्छाएं विकराल रूप धारण कर रही हैं | आम आदमी के बारे में वह लिखती है - 
आम आदमी, ताकत इतनी / कि पलटे वह सरकार /
पर नहीं है इतनी ताकत / जो वो ख़ुद का करे बचाव ( पृ. - 50 )
               कवयित्री फैशन वीक के नाम पर नए चलन के कपड़ों पर प्रहार करती है | उसके अनुसार असली कारोबार नकली चीजों का है | पियोन से एम.डी. तक रिश्वत का चढावा चढ़ता है | वह आग से जलती झोंपड़ी का ब्यान करती है, लेकिन उसे लगता है कि पेट की आग ज्यादा भयानक है | सब बातें वहीं हैं, ऐसे में नया साल कोई अर्थ नहीं रखता | कुर्सी को लेकर मारा-मारी है | महंगाई की मार है | बुढापे में जिन्दगी चुनौती बन जाती है | आतंकवाद की बीज धरती पर पड़ने से घर हैवानियत की भेंट चढ़ रहे हैं | कर्फ्यू की मार सबसे ज्यादा मजदूर पर पड़ती है - 
शहर बंद हुआ या / रामू के घर का चूल्हा /
मन सोचने को मजबूर ( पृ. - 33 )
                       कवयित्री दीपक की हिम्मत को दाद देती है | वह देश भक्तो को सजदा करती है और ऐसी जवानी की कामना करती है जो देश पर कुर्बान हो सके | वह इंसान के बारे में लिखती है - 
नफरतों की दीवार / जो गिराए / 
न हिन्दू न मुस्लिम / इंसान कहलाए  ( पृ. -  40 )
                        कवयित्री का मन शब्दों का साथ पाकर निर्झर सा बह निकलता है | वह मन को पानी सा होने को कहती है | नदी उसे अपने प्रिय से मिलने जाती प्रियतमा लगती है, लेकिन उफनती नदी सवाल करती है कि मानव तूने मेरी क्या कद्र पाई | धरा का डोलना भी मानव को इशारा है कि वह प्रकृति की कद्र करे | कवयित्री अपनी कविताओं में प्रकृति के खूबसूरत चित्र खींचती है | बसंत का चित्रण देखिए - 
मृत तुल्य हो गई थी वसुधा / ऋतुराज मिल जीवन पाया /
सखी री बसंत आया ....  ( पृ. -  26 )
वह गर्मी, बादल का चित्रण करती है | वह धरती की प्यास बुझाने के लिए काले बादलों को बुलाती है | लता का वृक्ष से लिपटने का सजीव चित्रण है | ' ऋण ' नामक इस प्रतीकात्मक कविता की रचना कवयित्री के कौशल का बखान करती है | 
                    इस संग्रह में रिश्तों का बयान है, मौला से उलाहना है, पक्षियों के माध्यम से उन लोगों पर प्रहार है, जो किसी भी हालत में ख़ुश नहीं रहते | कवयित्री के अनुसार दिल के हाथों सब मजबूर हैं | दिल कभी हकीकत से दूर ले जाता है तो कभी डाक्टर के पास ले जाता है | इन कविताओं में यहाँ पर्याप्त गंभीरता है, वहीं चुटीला अंदाज भी है |
                           ग़ज़लनुमा कविताएँ यहाँ गंभीर हैं, वहीं इनमें नाजुक ख्याली भी है | कवयित्री का प्यार मछली जैसा, ख़्वाब तितली जैसे, आस जुगनू जैसी और परवाज पंछी जैसी है | कवयित्री का मानना है कि कुछ हासिल करने के लिए कष्ट सहना पड़ता है | झुकते वही हैं जिनके पास देने को कुछ होता है | उनकी इन रचनाओं में कश्मीर की बेनूरी का फ़िक्र है, मुश्किलों का जिक्र तो गुरु की कद्र है | उसके अनुसार लकीरों में पुरुषार्थ ढूँढना व्यर्थ है | वह अलग-अलग नजरिये की बात करती है | वह तोलकर बोलने और मीठा बोलने का संदेश देती है और दूसरों पर लांछन लगाने वालों को गिरेबान में झाँकने के लिए कहती है |
                         कवयित्री के अनुसार भाषा-मजहब हमें बाँट रहे हैं | इतना ही नहीं भाषा-मजहब के नाम से बांटने वाले वही हैं जो अमन का पैगाम देते हैं | देश में आंकड़ों का खेल खेला जा रहा है | देश की राजनीति के बारे में वह लिखती है - 
आरक्षण का दिया खिलौना /
जब-जब उठी कोई आवाज ( पृ. -  88 )
कवयित्री का मानना है कि महंगाई के इस दौर में जमीर सस्ता है | दुनिया दिल में रंजिश और हाथों में कटार रखती है | वह ऑनरकिलिंग को छोड़ने को कहती है, साथ ही हल भी सुझाती है - 
यौवन की सीढ़ी चढ़ते हैं जब /
थोड़ी-सी ऊँच-नीच भी समझानी | ( पृ. -  77 )
                            कवयित्री हर शै में खुदा का नूर पाती है | गुरुओं के अनुसार वह एक है | उसकी रजा में रहना चाहिए | वह लिखती है - 
हम उसके खिलौने वह हमको नचाता /
कभी वह बनाता कभी वह मिटाता | ( पृ. -  99 )
                            संग्रह के अंतिम हिस्से में 5 गीत हैं | गीतों में कवयित्री प्यार का गीत भी गाती है और वीर रस का भी | वह वीर जवानों का आह्वान करती है और उनकी शहादत पर सत्ता से सवाल भी करती है | वह निर्भय को याद करती है | वतन के दीवानों की सलामती मांगती है | नफ़रत को भुलाकर प्यार का गीत गाने को कहती है - 
चलो आज फिर प्यार का गीत गायें /
छेड़ो साज ऐसा नई धुन बनायें /
टूटी माला के मोती फिर से सजायें /
चलो आज फिर पयार का गीत गायें | ( पृ. -  109 )
                         कवयित्री ने कविताओं को सहज-सरल भाषा में कहा है | भावानुकूल शब्दों का चयन है, तभी तो क्रप्शन, कॉन्टेस्ट, पियोन, डुप्लीकेट, वारि, कन्दुक, दाना जैसे बहुभाषी शब्दों का प्रयोग है | मुहावरों का प्रयोग देखिए - 
इन पर पानी नहीं है ठहरता 
ये तो एकदम चिकने घड़े हैं | ( पृ. -  98 )
                        संक्षेप में, यह कविता-संग्रह सही अर्थों में सतरंगी चमक बिखेरता है | कवयित्री इसके लिए बधाई की पात्र है |
दिलबागसिंह विर्क 
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