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बुधवार, जून 01, 2016

134 ए : शिक्षा के निजीकरण की ओर एक कदम

शिक्षा का जीवन में स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है | दरअसल शिक्षा ही मानव को मानव बनाती है | प्रत्येक राष्ट्र का कर्त्तव्य बनता है कि वह अपने नागरिकों को शिक्षित करे | आजादी के बाद ही नहीं, अपितु आजादी के पूर्व भी भारत में निशुल्क शिक्षा का समर्थन किया गया | स्वर्गीय गोपाल कृष्ण गोखले ने 18 मार्च 1910 में ही भारत में 'मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा' के प्रावधान के लिए ब्रिटिश विधान परिषद् के समक्ष प्रस्ताव रखा था, लेकिन तब सत्ता अंग्रेजों के हाथ में थी | स्वतन्त्रता के बाद भारतीय संविधान में मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का आश्वासन दिया गया और इसे नीति निर्देशक सिद्धांतों में रखा गया लेकिन जब इसे पर्याप्त नहीं समझा गया तो 86 वें संशोधन के अंतर्गत 2002 में देश के 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने संबंधी प्रावधान किया गया, इसे अनुच्छेद 21 (क) के अंतर्गत संविधान में जोड़ा गया | शिक्षा का अधिकार अधिनियम के लिए एक कच्चा मसौदा विधेयक 2005 में प्रस्तुत किया गया, 2009 में इस अधिनियम को स्वीकृति मिली और 1 अप्रैल 2010 से इसे भारत में लागू कर दिया गया । मुफ्त शिक्षा के लिए 134 ए का भी प्रावधान किया गया | गरीब परिवारों के लिए इसे अच्छा माना जा सकता है, लेकिन इसका दुष्प्रभाव सरकारी स्कूलों पर अवश्य पड़ेगा और यह शिक्षा के निजीकरण की ओर एक कदम हो सकता है | 

क्या है 134 ए ?  
नियम 134 ए को हरियाणा शिक्षा नियमावली में वर्ष 2003 में स्थान दिया गया, लेकिन 134 ए का लागू होना हरियाणा में समस्या बनकर रह गया है | इस नियम के अंतर्गत राज्य के सभी मान्यता प्राप्त विद्यालयों को 25 प्रतिशत सीटें गरीब छात्रों की मुफ्त शिक्षा के लिए रखनी अनिवार्य थी | 2013 में हुड्डा सरकार ने 25 फीसदी के कोटे को कम करके 10 फीसदी कर दिया | इस नियम के अंतर्गत दूसरी कक्षा से लेकर बारहवीं कक्षा तक दाखिले किए जाने हैं, जबकि पहली कक्षा में दाखिला RTE के अंतर्गत 2 कि.मी. के दायरे में सरकारी स्कूल में किया जाना है और अगर 2 कि.मी. के दायरे में सरकारी स्कूल नहीं तो उसका दाखिला प्राइवेट स्कूल में होगा | कक्षा 2 से 8 तक कोई फीस नहीं देनी होगी, जबकि 9 वीं से 12 वीं कक्षा में उतनी फीस देनी होगी, जितनी सरकारी स्कूल की है |  प्राइवेट संस्थाएं इसे स्वीकार नहीं कर रही और इस नियम को लेकर सरकार और प्राइवेट संस्थाएं आमने-सामने आ गई हैं | कानूनी लड़ाई हुई | अदालत के फैसलों के बाद भी स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हुई है |
134 ए की प्रासंगिकता 
भारतीय संविधान सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है, इस दृष्टि से 134 ए काफी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अब गरीब लोग भी अपने बच्चों को प्राइवेट संस्थानों में पढ़ाने के अपने सपने को साकार कर पाएँगे | यहाँ तक शिक्षा का सवाल है, यह सरकार के सरकारी स्कूलों के प्रति अविश्वास को ही दिखाता है | क्या अच्छी शिक्षा सिर्फ प्राइवेट स्कूलों में ही दी जा सकती है ? सरकार आरोही मॉडल स्कूल खोल रही है, आदर्श स्कूल खोल रही है, 134 ए के अंतर्गत बच्चों को प्राइवेट संस्थानों में भेज रही है, ऐसे में सरकारी स्कूल क्या सिर्फ साक्षरता का सर्टिफिकेट बांटने के लिए हैं ? आरोही स्कूलों के लिए प्रवेश परीक्षा है अर्थात  अच्छे विद्यार्थी ही वहाँ जाते हैं | 134 ए में भी विद्यार्थियों की संख्या ज्यादा होने पर मैरिट के आधार पर बच्चे भेजे जाएंगे, ऐसे में भी प्राइवेट स्कूलों में सिर्फ होशियार बच्चों का दाखिला होगा | जब आप अच्छे विद्यार्थियों को सरकारी स्कूलों से निकालकर दूसरे स्कूलों में भेज दोगे तो सरकारी स्कूलों का औचित्य क्या रह जाएगा ? भिन्न – भिन्न प्रकार के स्कूलों की स्थापना करने और बच्चों को प्राइवेट स्कूलों का मोह दिखाने की अपेक्षा जरूरी है कि सरकारी स्कूलों को उस स्तर का बनाया जाए, जिस स्तर के प्राइवेट स्कूल हैं | सरकारी स्कूलों में भी अब सामान्यत: भौतिक साधनों की कमी नहीं, लेकिन स्कूल का संबंध भवन से नहीं होता | सरकारी स्कूल अध्यापकों की कमी से जूझ रहे हैं | स्कूल मुखिया विहीन हैं, क्लर्क और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी नहीं हैं, ऐसे में जो अध्यापक हैं, उनमें से कोई मुखिया की भूमिका निभा रहा है, कोई क्लर्क की | पढाई के अतिरिक्त कार्यों की भरमार है | सरकारी स्कूल के अध्यापक का रोल अगर उतना ही हो, जितना प्राइवेट स्कूल के अध्यापक का तो शायद 134 ए की कोई जरूरत नहीं रहेगी | 134 ए सिर्फ उन लोगों के लिए है जिनकी वार्षिक आय 2 लाख से कम है | जिनकी वार्षिक आय 2 लाख से ज्यादा है, लेकिन इतनी ज्यादा भी नहीं कि एक बच्चे पर सालाना 30 हजार खर्च सकें क्या उन्हें अच्छी शिक्षा नहीं दी जाएगी ? क्या सरकारी स्कूल सिर्फ असमर्थ अभिभावकों और अयोग्य विद्यार्थियों के लिए हैं या यह शिक्षा का निजीकरण करने की ओर एक कदम है ? 
शिक्षा के मौलिक अधिकार के अंतर्गत सबको शिक्षा का अवसर दिया जाना चाहिए, 134 ए के अंतर्गत अभिभावकों को प्राइवेट स्कूल में पढाने की स्वतन्त्रता हो, लेकिन सरकारी स्कूलों की कीमत पर नहीं ? शिक्षा देना सरकार का दायित्व है और बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजकर इस दायित्व से भागने की बजाए इस दायित्व को इस कद्र निभाया जाना चाहिए कि मारामारी प्राइवेट स्कूल में दाखिले की बजाए सरकारी स्कूल में दाखिले की हो |
दिलबागसिंह विर्क

1 टिप्पणी:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-06-2016) को "दो जून की रोटी" (चर्चा अंक-2362) (चर्चा अंक-2356) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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